श्री कृष्ण जन्मभूमि का पूरा इतिहास: सुरु से अब तक

मथुरा के जिस स्थान पर श्री कृष्ण जन्मभूमि है, भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार लोगों की मान्यता है कि वहाँ हज़ारों वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण के मामा व राजा कंस का कारागार हुआ करता था, इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, इस जगह से लोगों की आस्था जुड़ी रही है और इसी आस्था से परेशान होकर दुष्ट,अत्याचारी व आक्रमणकारी विदेशी आक्रांताओं ने समय समय पर कई बार मंदिर को लूटा व तोड़ा।

सबसे पहला मंदिर

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का पहली बार भगवान श्री कृष्ण के परपौत्र बज्रभान ने अपने कुलदेवता की स्मृति में बनवाया था, लोगों का मानना है कि यहाँ पर मिले शिलालेखों के अनुसार वसु नामक व्यक्ति ने श्री कृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर व उसका तोड़न द्वारबनवाया था, उस वक़्त यह मंदिर साधारण था।

दूसरी बार बना मंदिर

इतिहासकारों के अनुसार यहाँ दूसरी बार भव्य मंदिर का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया था। यह मंदिर काफ़ी भव्य,सुंदर व सुशोभित था।

तीसरी बार बना मंदिर

इतिहासकारों के अनुसार खुदाई में मिले शिलालेखों से पता चलता है कि तीसरी बार इस मंदिर को 1150 इसबी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में बनवाया गया, इस बार मंदिर पहले से भी ज़्यादा भव्य था। इस मंदिर की भव्यता व लोगों की भगवान के प्रति आस्था सेचिढ़कर 16वीं शताब्दी के सुरुआत में सिकंदर लोदी ने तुड़वा दिया था।

चौथी बार बना मंदिर

इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर को ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने करवाया। यह मंदिर पहले के बने मंदिरों में से सबसे भव्य था, इसकी भव्यता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस वक़्त इस मंदिर को बनवाने में 33 लाख रुपए खर्च हुए थे। ये उस वक़्त की बात है जब 1 रुपए का महत्व इतना था कि लोगों का मानना है कि 1 रुपए में एक आम जीवन जीने वाला पूरा परिवार के लगभग 3 महीने का खर्च हुआ करता था। 

इस मंदिर की भव्यता से विदेशी आक्रांत काफ़ी चिढ़ा करते थे, शाहजहां व मुमताज़ का बेटा औरंगज़ेब ने इसकी भव्यता से चिढ़कर इसे1669 में तुड़वा दिया, जब औरंगज़ेब 51 वर्ष का था। और 1670 में यहाँ शाही ईदगाह बनवा दिया। कहा जाता है कि औरंगज़ेब मेंकट्टरता इतनी कूट-कूट कर भरी थी कि बूढ़ा पड़ जाने के बाद भी उसमें इस्लामिक कट्टरता कतरा भर भी काम नहीं हुआ।

राजा पटनीमल ने ख़रीदी कृष्णजन्मभूमि की ज़मीन

ब्रिटिश शासनकाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा हुए नीलामी में राजा पटनीमल ने इसे 45 लाख रुपए में ख़रीद लिया, जिसे मुस्लिम पक्षने इलाहाबाद कोर्ट में चुनौती दी,लेकिन यहाँ मुस्लिम पक्ष को निराशा hee हाथ लगी,1935 में फ़ैसला राजा पटनीमल के पक्ष में आया।कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद वहाँ श्री कृष्ण जन्मभूमि मदिर का निर्माण सुरु नहीं हो सका, वजह थी स्थानीय मुल्लों व मौलानाओं की बदमाशी।

मदन मोहन मालवीय ने जुगलकिशोर बिड़ला को लिखा पत्र

मंदिर की दुर्दशा से दुखी होकर पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जुगलकिशोर बिड़ला को इसके जीर्णोद्धाए के लिए पत्र लिखा। मालवीय जी के पत्र का सम्मान करते हुए बिड़ला ने 7 फ़रवरी 1944 को यह ज़मीन राजा पटनीमल के उत्तराधिकारी से ख़रीद लिया इसके बाद मालवीय जी का देहांत हो गया, बिड़ला ने उनकी आख़िरी इच्छा के अनुसार 21 फ़रवरी 1951 को श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।

ट्रस्ट और शाही ईदगाह समिति 1968 में एक समझौते पर पहुंची। इस समझौते ने शाही ईदगाह के अस्तित्व को मान्यता दी। जिसे मूल कृष्ण मंदिर के शीर्ष पर बनाया गया था और जिसका तब तक कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है, केवल समझौते के बाद शाही ईदगाह मस्जिद को पूर्ण कार्यात्मक स्थिति में बहाल किया गया था। यहां हिंदू संगठन या आम जनता से किसी समझौते पर पहुंचने से पहले सलाह नहीं ली गई थी।

यह सीधे बिड़ला और शाही ईदगाह समिति के बीच था। समझौते ने हिंदुओं को ईदगाह के दक्षिण में जमीन का एक छोटा टुकड़ा दिया। इसे 1982 में यहां मथुरा का आधुनिक कृष्ण मंदिर बनाया गया था। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस समझौते से हिंदुओं को धोखा मिला,


अधिक जानकारी के लिए हंस बक्कर की The History Of Sacred Place In India(1990) पढ़ें।

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